नयी दिल्ली, 11 जनवरी :रोमा रोलां, महात्मा गांधी, अरविंद घोष, रवींद्रनाथ टैगोर जैसे महान विभूतियों के जीवन और दर्शन को प्रभावित करने वाले विवेकानंद का दर्शन, अध्यात्म और नैतिक शिक्षा आज भी प्रासंगिक है।‘‘पॉलिटिकल फिलासॉफी ऑफ स्वामी विवेकनंद’ किताब की लेखिका कल्पना महापात्रा के अनुसार, ‘‘विवेकानंद के दर्शन में स्वतंत्रता और सामाजिक उत्थान का भाव है। उनका जीवन और विचार भारत के लोगों को सांस्कृतिक सम्मान, चिंतन और प्रगति के लिए प्रेरित करते हैं। एक सच्चे आध्यात्मवादी की तरह उन्होंने अध्यात्म के संदेश दिये।’’ सांसारिकता और भौतिकता से दूर सत्य की तलाश में जीवन बिताने वाले विवेकानंद का जीवन आज की वर्तमान पीढ़ी के लिए अनुकरणीय है।दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज से दर्शनशास्त्र में परास्नातक और वर्तमान में शोध छात्र दीपक सिन्हा ने कहा, ‘‘विवेकानंद का दर्शन और उनके संदेश में गहरा अध्यात्म छिपा है। विवेकानंद का पूरा जीवन और शिक्षा सही दिशा में जीवन जीने के लिए प्रेरित करते हैं। कर्मयोग के उनके संदेश कर्म को ईश्वर के रूप में देखने की प्रेरणा देते हैं।’’ ‘‘विवेकानंद ने सर्व धर्म सम्भाव और शांति एवं भाईचारे का संदेश दिया वो हर युग में प्रासंगिक रहेगा।’’ 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में जन्मे विवेकानंद को उनके गुरू रामकृष्ण परमहंस ने ‘अद्वैत वेदांत’ की शिक्षा दी। रामकृष्ण के सानिध्य में रहकर ही विवेकानंद को सत्य का ज्ञान हुआ। रामकृष्ण को गुरू बनाने में विवेकानंद को समय लगा लेकिन जब उन्होंने रामकृष्ण को गुरू के रूप में स्वीकारा तो पूरे तन और मन से उनके प्रति पूर्ण समर्पण किया।रामकृष्ण के सानिध्य में विवेकानंद मानसिक उथल पुथल से भरे एक अधीर युवक से एक परिपक्व पुरूष बन गये, जिसके जीवन का एकमात्र उद्देश्य अब सिर्फ परमेश्वर के बारे में जानना और जीवन के अर्थ को समझना था। फ्रांसीसी लेखक और दार्शनिक रोमा रोलां ने विवेकानंद की जीवनी ‘द लाइफ ऑफ विवेकानंद’ में लिखा है, ‘‘उनके शब्द बीथोवन के संगीत की तरह हैं जिनमें एक लय है। भारतीय संस्कृति और दर्शन विवेकानंद जैसे महामनीषियों के जीवन और दर्शन से ही गौरवमयी हुई है।’’ विवेकानंद पर उनके गुरू रामकृष्ण परमहंस के अलावा आदि शंकर, रामानुज और ईसा मसीह का भी प्रभाव पड़ा। 1888 में वह देश के अलग अलग हिस्सों की यात्रा पर निकले। वाराणसी, इलाहाबाद, रिषिकेश, नैनीताल होते हुए 1892 में वह कन्याकुमारी पहुंचे। वहां एक चट्टान पर ध्यान किया जहां बाद में उनकी याद में विवेकानंद रॉक मेमोरियल स्थापित किया गया।1893 में शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में अपने संबोधन से उन्होंने विश्व भर में अपने दर्शन और भारतीय संस्कृति को पहचान दिलायी। इस सम्मेलन के बाद अमेरिका के न्यूयार्क टाइम्स ने उनके बारे में लिखा, ‘‘कई धर्मों की जन्मभूमि भारत का विवेकानंद ने सही प्रतिनिधित्व किया जिससे यहां बैठे श्रोता बहुत आनंदित हुए।अरविंद घोष ने विवेकानंद के लिए कहा था, ‘‘विवेकानंद रचनात्मक उर्जा का प्रतीक थे। उनकी आत्मा हमेशा मातृभूमि भारत और उसके बच्चों की आत्मा के साथ जुड़ी रहेगी।’’ संपादकीय सहयोग – अतनु दास From Press Trust Of India