नयी दिल्ली..पटना, तीन जुलाई :भाषा: देश के नेताओं के स्विस बैंक में कथित खातों और करोड़ों रुपये के घोटाले के बीच देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू का बैंक खाता आज भी देश के एक राजनेता की सादगी और राजनीतिक चरित्र की अद्भुत नजीर है।पंजाब नेशनल बैंक की पटना स्थित एक्जिबिशन रोड शाखा के मुख्य प्रबंधक एसएल गुप्ता ने बताया कि बाबू राजेन्द्र प्रसाद ने 23 मई 1962 तक बतौर राष्ट्रपति देश की सेवा करने के बाद पटना लौटने पर यहां पंजाब नेशनल बैंक :पीएनबी: की इस शाखा में 24 अक्तूबर 1962 को खाता खुलवाया था, जिसका खाता क्रमांक अब 038000010030687 है।
उन्होंने बताया कि देश के प्रथम राष्ट्रपति के खाते को धरोहर के रूप में सहेज कर रखा गया है, क्योंकि यह पीएनबी के लिए गर्व की बात है। सम्मान के तौर पर प्रथम राष्ट्रपति को हमने ‘प्राइम कस्टमर’ का दर्जा दिया है। वह हमारे लिए सम्मानीय ग्राहक हैं। गुप्ता ने बताया कि नियमानुसार एक साल तक खाते का इस्तेमाल नहीं करने पर उसे ‘निष्क्रिय’ घोषित कर दिया जाता है, लेकिन राजेन्द्र बाबू का खाता अभी भी ‘सक्रिय’ है। इस खाते से लेन देन नहीं होता है, लेकिन इसमें प्रति छमाही ब्याज जमा होता है और इस वक्त इसमें 1813 रुपये जमा है। इसमें अंतिम दफा छह मार्च 2012 को ब्याज जमा हुआ था।पंजाब नेशनल बैंक ने राजेंद्र बाबू की तस्वीर और उनके खाते को बैंक में प्रदर्शित किया है, जिस पर बड़े-बडे अक्षरों में खुदा है, ‘‘देश के प्रथम राष्ट्रपति भी हमारे सम्मानजनक ग्राहक थे।’’ राजनीतिक विचारक के. गोविंदाचार्य ने कहा, ‘‘भारत की परंपरा रही है कि सत्ता के सर्वोच्च पद पर आसीन व्यक्ति सादगी, मितव्ययता और देशभक्ति का जीवंत स्वरूप हो, जैसे डा. राजेन्द्र प्रसाद रहे हैं।’’ उन्होंने कहा कि बाजारवाद का भार, अभाव में तड़पता 80 फीसदी जनमानस अपेक्षा करता है कि राष्ट्रपति पद के साथ अपना रिश्ता जोड़ सके। इस तरह देश के आमजन का भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था के साथ नाता जुड़ेगा। गांधीवादी विचारक और पटना के गांधी संग्रहालय के सचिव रजी अहमद राजेंद्र बाबू की सादगी को आने वाली नस्ल के लिए मिसाल बताते हैं।
वह कहते हैं, ‘‘राजनीतिक गिरावट के इस दौर में राजेंद्र बाबू, डा. जाकिर हुसैन और सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे राष्ट्रपति आने वाली पीढी के लिए रौशनी हैं। वर्तमान दौर का राजनैतिक चरित्र भावी पीढी को दिशा नहीं दे सकता।’’ अहमद कहते हैं, ‘‘राजेंद्र प्रसाद जैसे देश का संविधान बनाने वाले लोगों ने भारत को स्वाभिमानी, आत्मनिर्भर बनाने में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। अब समय बदलने के साथ राजनीति का चरित्र बदला है। अब सेवा पर नहीं मेवा पर जोर दिया जाता है।’’ वह कहते हैं कि आज का समाज सब कुछ पैसे पर तौलता है। अब मर्यादाओं पर हमले हो रहे हैं और राजनीति की लक्ष्मण रेखा लांघी जा रही है। संपदकीय सहयोग : अतनु दास From Press Trust Of India

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