जन्माष्टमी के पावन अवसर पर श्री कृष्ण से जुड़ी कथाओंका विशेष चित्रण आपके लिए प्रस्तुत हैं l

ब्रह्मा जी, भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से आश्चर्य में पड़ जाते थे। वे जानते थे कि यह गोपाल स्वयं श्रीभगवान है किंतु वे भगवान की अन्य लीलाएं भी देखना चाह रहे थे अतः उन्होंने एक योजना बनाकर उनके सारे ग्वाल मित्रों और बछड़ों को हर लिया और उन्हें दूसरे स्थान में ले गए, इसलिए भगवान कृष्ण ढूंढने पर भी उन पशुओं को नहीं पा सके।

एक ग्वाले के रूप में भगवान कृष्ण ब्रह्मा जी से बहुत छोटे थे किंतु भगवान होने के कारण उन्हें यह समझने में देर नहीं लगी कि सारे बछड़े तथा बालक ब्रह्माजी द्वारा चुरा लिए गए हैं। वे अब सोचने लगे ब्रह्मा ने तो सारे बालकों का अपहरण कर लिया है अब मैं वृंदावन कौन सा मुंह लेकर जाऊंगा सब की माताएं शोकाकुल होंगी।

अतः अपने मित्रों की माताओं को प्रसन्न करने के तथा ब्रह्मा को श्रीभगवान की सर्वोच्चता से आश्वस्त कराने की दृष्टि से उन्होंने तुरंत ही नन्हे ग्वालबाल तथा बछड़ों के रूप में अपना विस्तार कर लिया।


वेदों में कहा गया है कि श्री भगवान अपनी शक्ति के द्वारा सभी जीवो के ह्रदय में निवास करते हैं अतः उनके लिए इतने ग्वालों तथा बछड़ों के रूप में विस्तार करना कोई कठिन काम नहीं था। उन्होंने अपना विस्तार उतने ही बालकों के अनुरूप किया जो विभिन्न आकृति तथा शरीर की बनावट वाले एवं अपने वस्त्रों तथा आभूषण एवं आचरण तथा व्यक्तिगत कार्यकलापों से भिन्न भिन्न थे।

ऐसा करके श्री कृष्ण वृंदावन में प्रविष्ट हुए। ब्रज वासियों को यह कुछ भी ज्ञात ना था कि क्या घटना घटी है। वृंदावन में प्रवेश करके सारे बछड़े अपनी अपनी शालाओं में चले गए और सारे बालक अपने अपने घरों तथा माताओं के पास पहुंच गए। उनके प्रवेश से पूर्व बालकों की माताओं ने वंशी की ध्वनि सुनी, अतः वह उन्हें लेने के लिए अपने अपने घरों से बाहर आ गई और उनका आलिंगन किया। वात्सल्य के कारण उनके स्तनों से दूध की धारा बह निकली और उन्होंने बालकों को स्तनपान कराया।
किंतु यह दूध पिलाना अपने बालकों जैसा ना होकर भगवान को दूध पिलाने जैसा था जिन्होंने इन बालकों के रूप में अपना विस्तार किया था।

यह दूसरा अवसर था कि वह भगवान को अपना स्तनपान करा रही थी। भगवान कृष्ण ने ना केवल यशोदा को दूध पिलाने का अवसर दिया अपितु इस बार उन्होंने समस्त वयोवृद्ध गोपीयो और गइयों को यह अवसर प्रदान किया।

सारे बालक अपनी अपनी माताओं के साथ पूर्वव्रत व्यवहार करने लगे और माताएं भी संध्या होने पर अपने अपने बालकों को तिलक तथा आभूषणों से सुसज्जित करने तथा दिन भर के श्रम के बाद भोजन देने की व्यवस्था करने लगी।
इसी प्रकार गाय भी चारा गाहों से संध्या के समय लौटी और अपने-अपने बछड़ों से हिल मिल गई।

गायों तथा गोपियों का अपने-अपने बछड़ों तथा बालकों के प्रति यह संबंध इसी तरह बना रहा, यद्यपि वास्तव में मूल बछड़े तथा बालक वहां नहीं थे।
वस्तुतः गायों का बछड़ों के प्रति और गोपीयों का अपने बालकों के प्रति यह वात्सल्य बढ़ता गया।
उनका वात्सल्य सहज ही बढ़ता रहा यद्यपि यह बछड़े तथा बालक उनकी संताने ना थी। यद्यपि वृंदावन की गाय तथा गोपियां कृष्ण को अपनी अपनी संतानों से अधिक प्रेम करती थी किंतु इस घटना के बाद उनका यह प्रेम अपनी संतानों के प्रति भी उसी तरह बढ़ गया जिस तरह में कृष्ण के प्रति था।

कृष्ण ने 1 वर्ष तक बछड़ों तथा बालकों के रूप में स्वयं को विस्तारित रखा और चारागाहो में भी उपस्थित रहे।
जैसा की भागवत गीता में कहा गया है कृष्ण का विस्तार प्रत्येक ह्रदय में परमात्मा के रूप में स्थित हैं इसी प्रकार स्वयं को परमात्मा रूप में विस्तारित ना करके 1 वर्ष तक ग्वालों तथा बछड़ों के रूप में विस्तारित रहे।

एक दिन जब कृष्ण बलराम के साथ जंगल में बछड़ों को चरा रहे थे तो उन्होंने गोवर्धन की चोटी पर कुछ गायों को चरते देखा। ये सभी गाय वही से घाटी में ग्वालबालों द्वारा अपने बछड़ों की रखवाली होते देख सकती थी।
फिर वे सब अपने बछड़ों को देखकर उनकी और दौड़ने लगी। वह अगले तथा पिछले पांव बंधे होने पर भी पहाड़ी से नीचे कूद आई।
यह समस्त गाय अपने बछड़े के प्रेम से इतनी द्रवित थी कि गोवर्धन पर्वत की चोटी से खराब मार्ग की तनिक भी परवाह ना कि, उनके धन दूध से पूरित थे और वे अपनी पूछे उठाए बछड़ों के पास पहुंच गई।

जब वे पहाड़ से नीचे आ रही थी तो उनके थनों से अपने बछड़ों के प्रेम के कारण दूध की धारा चू रही थी। यद्यपि वे बछड़े उनके अपने बछड़े ना थे इन गायों के अपने-अपने बछड़े थे। और गोवर्धन के नीचे जो बछड़े चल रहे थे वह उनसे कुछ बड़े थे।

जब गाय गोवर्धन पर्वत से नीचे की ओर दौड़ रही थी तो उन की रखवाली करने वाले व्यक्तियों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया।
प्रायः बड़ी गायों की रखवाली पुरुष करते हैं और बछड़ों की रखवाली बालक करते हैं, जहां तक संभव होता है बछड़ों को गायों से पृथक रखा जाता है। जिससे वे गायों का सारा दूध ना पी जाए अतः जो व्यक्ति गोवर्धन की चोटी पर गायों की रखवाली कर रहे थे उन्होंने उन्हें रोकने का प्रयास किया किंतु वे असफल रहे।

वह बहुत अप्रसन्न थे किंतु जब हुए पर्वत से उतर कर नीचे आए तो देखा कि उनके बालक गाय के बछड़ों की ठीक से देख रेख कर रहे हैं तो वे उनके प्रति अत्यंत प्रेम भाव व्यक्त करने लगे।
यह अत्यंत आश्चर्यजनक था, यद्यपि सारे पुरुष निराश व्यग्र तथा क्रुद्ध होकर पर्वत से नीचे आए थे किंतु ज्यों ही उन्होंने अपने पुत्रों को देखा तो उनके ह्रदय प्रेम से द्रवित हो उठे उनका क्रोध असंतोष तथा प्रसन्नता सभी छूमंतर हो गया और वे अपने पुत्रों के प्रति प्रेम का प्रदर्शन करने लगे और बड़े ही स्नेह से अपनी गोद में उठाकर उनका आलिंगन किया।

फिर उनके सिर सूंघकर, उनके साथ परम प्रसन्नता का अनुभव किया। अपने पुत्रों का आलिंगन करने के बाद में पुन्ह अपनी गायों को गोवर्धन की चोटी पर ले गए। रास्ते में वे अपने पुत्रों के विषय में सोचते रहे और उनके नेत्रों से प्रेमाश्रुओ की वर्षा होती रही।

जब बलराम ने गायों तथा बछड़ों एवं, पिता तथा पुत्रों के मध्य इस प्रकार का प्रेम का अद्भुत आदान-प्रदान देखा, विशेष रूप से जब बछड़ों या बालकों को इसकी देखरेख की आवश्यकता ना थी तो उन्हें आश्चर्य होने लगा कि यह क्या हो रहा है?

वो यह देखकर आश्चर्यचकित थे कि वृंदावन के समस्त निवासी अपनी अपनी संतानों के प्रति उसी प्रकार वत्सल हैं जिस प्रकार की वह कृष्ण के प्रति हैं इसी तरह सारी गाय अपने अपने बच्चों के प्रति उतनी ही वत्सल हैं जितनी कि कृष्ण के प्रति अतः बलराम ने यह निष्कर्ष निकाला कि यह प्रेम का अद्भुत प्रदर्शन रहस्यआत्मक है चाहे यह देवताओं द्वारा संपन्न हो रहा हो या किसी शक्तिशाली व्यक्ति के द्वारा अन्यथा यह अद्भुत परिवर्तन कैसे आता।

वे सोचने लगे हो ना हो यह कृष्ण द्वारा संपादित है इस प्रकार बलराम समझ गए कि यह बालक तथा बछड़े कृष्ण के ही अंश हैं।
बलराम ने कृष्ण से वास्तविक स्थिति जाननी चाही अतः वह बोले हे कृष्ण! पहले मैं सोच रहा था कि यह सारी गाय और ग्वाल या तो ऋषि मुनि है या देवता है, किंतु अब मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यह सब तुम्हारे ही अंश हैं, यह सब तुम ही हो और तुम स्वयं बछड़ों तथा गांवों एवं बालकों की लीला कर रहे हो इसका क्या रहस्य है? और वे सभी असली बछड़े तथा बालक कहां हैं? क्या तुम मुझे बता सकोगे इसका क्या कारण है?

बलराम की प्रार्थना पर कृष्ण ने संक्षेप में सारी स्थिति बतला दी, कि किस तरह सारे बछड़े तथा बालक चुरा लिए गए हैं और किस तरह उन्होंने इस घटना को छिपाने के लिए स्वयं का विस्तार किया जिससे ब्रजवासी यह ना जान पाए कि उनकी असली गाय तथा बछड़े कहां गए हैं।

जब कृष्ण तथा बलराम इस प्रकार की बातें कर रहे थे कि ब्रह्मा एक क्षण के अनंतर लौट आए।
हमें भगवत गीता से भगवान ब्रह्मा की आयु की सूचना होती है, कि ब्रह्मा का 1 दिन चारों युगों की अवधि से 1000 गुने के बराबर होता है। इसी प्रकार ब्रह्मा का एक-एक क्षण एक सौर वर्ष के तुल्य है।

अपनी गणना के अनुसार ही ब्रह्मा एक क्षण बाद ही अपने द्वारा बालकों तथा बछड़ों के चुराए जाने से उत्पन्न को दुख देखने के लिए लौटे किंतु वे मन ही मन भयभीत भी तो थे, कि यह आग के साथ खिलवाड़ करने जैसा है, कृष्ण मेरे स्वामी है और मैंने कौतुक वश ही उनके बछड़े तथा बालक चुराए हैं।

वे सचमुच व्यग्र थे अतः वे देर तक वहां नहीं रह पाए। आते ही उन्होंने देखा कि सारे बालक बछड़े तथा गाय कृष्ण के साथ पूर्ववत क्रीड़ा रत हैं।
यद्यपि उन्हें विश्वास था कि वे उन्हें चुरा ले जा चुके हैं और अपने योग शक्ति से उन्हें सुला रखा है। अतः ब्रह्मा यह सोचने लगे मैंने तो सारे बालक बछड़े तथा गाय चुरा ली थी और मुझे ज्ञात है कि वह अभी भी सो रहे हैं तो फिर यह कैसे संभव हो सकता है कि वैसे ही बछड़े गाय तथा बालक कृष्ण के साथ क्रीड़ा कर रहे हैं।

कहीं यह मेरी योग शक्ति से अप्रभावित तो नहीं है क्या यह 1 वर्ष तक कृष्ण से खेलते रहे हैं?
ब्रह्मा यह जानने का प्रयत्न करते रहे कि वह सब कौन थे और उनकी योग शक्ति से किस प्रकार अप्रभावित रह रहे थे किंतु वे निश्चित नहीं कर पाए।
दूसरे शब्दों में ब्रह्मा स्वयं अपनी योग शक्ति के वशीभूत हो गए। उनकी योग शक्ति दिन में जुगनू के समान प्रतीत होने लगी।

ब्रह्मा को यह बताने के लिए कि वह सब गाय बछड़े तथा बालक जो कृष्ण के साथ खेल रहे हैं वह असली नहीं हैं वह सब विष्णु रूप में रूपांतरित हो गए। वास्तव में असली ग्वाल बाल तथा बछड़े तो ब्रह्मा की योग शक्ति के कारण सोए हुए थे, किंतु जिन रूपों को ब्रह्मा देख रहे थे वह स्वयं कृष्ण के अंश थे अब तो ब्रह्मा जिस-जिस पर ज्यों ही नजर डालते हैं उनमें उन्हें विष्णु ही दिखाई दे रहे थे।

ब्रह्मा ने यह भी देखा कि भगवान विष्णु के शरीर पर चरण कमलों से लेकर सिर तक तुलसीदल अर्पित किए जा रहे थे विष्णु रूपों की अन्य विशेषता यह थी कि वह सब अत्यंत सुंदर थे अपनी चितवन से ही जगत के सृष्टा तथा पालक प्रतीत हो रहे थे।
विष्णु सतोगुण के, ब्रह्मा रजोगुण के तथा शिव तमोगुण के प्रतीक हैं।

विष्णु भगवान की इस अभिव्यक्ति के बाद ब्रह्मा ने देखा कि भगवान को चारों ओर से घेर कर अनेक ब्रह्मा शिव, देवता तथा एक चींटी के से लेकर जड़ जंगम सारे जीव नाच रहे हैं।
उनके नृत्य के साथ अनेक प्रकार का संगीत हो रहा है और वह सब विष्णु की पूजा कर रहे हैं ब्रह्मा को ज्ञान हुआ कि विष्णु  के सारे रूप पूर्ण हैं उनमें अणु से छोटा बनने की सिद्धि से लेकर दृश्य जगत जैसे असीम रूप रूप है। विष्णु के शरीर में ब्रह्मा की सारी योग शक्तियों शिव सारे देवता तथा दृश्य जगत के चौबीसों तत्वों को पूरा प्रतिनिधित्व प्राप्त था।

अब कृष्ण को ब्रह्मा पर दया आ गई कि, वे यह देखते हुए कि कृष्ण किस प्रकार स्वयं को गायों तथा ग्वालों में रूपांतरित करके विष्णु की शक्ति का प्रदर्शन कर रहे थे, इसे समझने में असमर्थ थे अतः उन्होंने सहसा अपनी योगमाया का आवरण हटा दिया।
जब ब्रह्मा जी की व्यग्रता दूर हुई तो ऐसा लग रहा था मानो वह मृतक अवस्था से जगे हो वे अपने नेत्र कठिनाई से खोल पा रहे थे।
तब उन्होंने सास्वत दृश्य जगत को सामान्य आँखों से देखा, उन्हें अपने चारों ओर वृंदावन का आवरण अत्यंत मनोहारी दृश्य दिखा जिसमें वृक्ष और समस्त जीवो का जीवन स्त्रोत था उन्हें वृंदावन की दिव्य भूमि का अनुमान लग सका जहां के सारे वासी दिव्य हैं।

अब ब्रह्मा तुरंत अपने वाहन हंस से उतर आए और भगवान कृष्ण के समक्ष इस प्रकार गिर पड़े मानो कोई सोने का दंड हो भगवान को अपने समक्ष देखकर वह रोते हुए अत्यंत सम्मान विनय तथा ध्यान पूर्वक प्रार्थना करने लगे, “मैं महाराज नंद के उन पुत्र को बारंबार सादर नमस्कार करता हूं जो मेरे समक्ष कुंडल तथा सिर में मोर पंख धारण किए हुए हैं।”

हे भगवान आप ही एकमात्र आराध्य परमेश्वर हैं अतः मैं आपको विनीत प्रणाम करता हूं और आप को प्रसन्न करने के लिए स्तुति कर रहा हूं।
आपका शरीर जल पूरित बादलों के रंग वाला है, आप अपने पीतांबर के द्वारा  रजत रश्मि मंडल से चमचमआ रहे हैं।
हे प्रभु मुझे समस्त वैदिक ज्ञान का स्वामी कहा जाता है और मुझे ही इस ब्रह्मांड का स्वामी भी किंतु अब यह सिद्ध हो चुका है कि मैं आप को नहीं समझ सकता भले ही आप बाल रूप में मेरे सामने उपस्थित हैं।

इस प्रकार अपनी गलती मान कर ब्रह्मा बारंबार भगवान कृष्ण की प्रार्थना करने लगे और अश्रु बहाने लगे। तत्पश्चात इस ब्रह्मांड के स्वामी ब्रह्मा भगवान कृष्ण को सादर प्रणाम करके तथा तीन बार उनकी परिक्रमा कर लेने के बाद अपने ब्रह्मलोक को जाने के लिए उद्यत हुए, भगवान ने संकेत के द्वारा उन्हें जाने की अनुमति दे दी ब्रह्मा के जाते ही श्रीकृष्ण ने तुरंत वही रूप धारण कर लिया जैसा कि गायों तथा ग्वालों के अदृश्य होने के दिन था और शाम होते ही सभी ग्वाल बाल घर चले गए।

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