तेज धूप के बाद पड़ने वाली गर्मी और फिर बारिश की ठंडी फुहारें।चारो तरफ  हरियाली ,फूलों में उड़तीं तितलियां हर  व्यक्ति का  मन विभोर कर देतीं है ,हरियाली छाने से इंसानो को तो हरापन अच्छा लगता ही  है, नमी और वातावरण में उमस बढ़ जाने से रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं के पनपने की संभावना काफी बढ़ जाती है। डेंगू , इंसेफलाइटिस रोगों में तो मरीज की लापरवाही से उसके शीघ्र इंटेंसिव केअर यूनिट (ICU)में भी शिफ़्ट करना पड़ जाता है ,क्योंकि डेंगू की एक अवस्था में मरीज़ के blood में उपस्थित प्लेटलेट्स की संख्या तेजी से गिरने लगती है ,  जिससे उसके आंतरिक अंगों से रक्तस्राव होने लगता है दूसरी ओर मैनिंजाइटिस में भी मरीज़ अपने मस्तिष्क से नियंत्रण खो बैठता है ,और सेंस में नही रहता , उसके मस्तिष्क के झिल्ली में सूजन आ जाने से हालात ख़राब होने लगती है और आंतरिक अंगों के कम काम करने के कारण कृत्रिम  स्वांस( वेंटीलेटर)  द्वारा  मरीज़ को उपचारित किया जाता है।

मौसम के परिवर्तन के साथ शरीर उससे स्वाभाविक तौर पर तालमेल बिठाकर चलता है। अगर हम मौसम के परिवर्तन के साथ शरीर के सामंजस्य बिठाने में बाधा खड़ी करेंगे तो फिर कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के शिकार हो सकते हैं।ऐसे समय में स्वास्थ्य के प्रति खास तौर पर सचेत रहने की जरूरत है क्योंकि इन दिनों में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अपने न्यूनतम स्तर पर व संक्रामक शक्तियां अपने उच्चतम स्तर पर होती हैं।

पाचन संबंधी रोग
गर्मी व वर्षा ऋतु में शरीर की जठराग्नि मंद पड़ जाने से पाचनशक्ति काफी कमजोर हो जाती है। इस कारण अपच, कब्ज, गैस, दस्त, हैजा, अतिसार और पेचिश आदि रोगों की शिकायतें 

सांस और वात संबंधी रोग
मौसम के ऐसे बदलाव के बीच अधिक नमी व सीलन वाली जगहों पर रहने वाले लोगों को सर्दी, जुकाम, खांसी जैसे सामान्य किंतु पीड़ादायी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इसके साथ ही जकड़न व सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्या भी बढ़ सकती है। 

त्वचा व सौंदर्य संबंधी रोग
त्वचा हमारे शरीर के भीतरी अंगों की सुरक्षा कवच है एवं स्वस्थ- स्निग्ध और साफ त्वचा सुंदरता का पैमाना भी है। नमी, पसीने, गंदे पानी में स्नान आदि से त्वचा संबंधी कई तरह के रोगों को पनपने का मौका मिल जाता है। जीवाणुओं, फंगस व परजीवियों के लिए नमी सबसे अनुकूल वातावरण है। इसलिए इस मौसम में दाद, खाज, खुजली, चर्मरोग, एलर्जी, दाने, घमौरियां, मुंहासे और फुंसियों आदि की समस्याएं आमतौर पर देखने को मिलती हैं।

बचाव के उपाय
’बरसात में अपनी व अपने आसपास की सफाई तथा दूषित व संक्रमित बासी भोजन व फलों के सेवन से बचना ही श्रेयस्कर है।
’प्रतिदिन नहाएं, सूखे पतले, ढीले व सूती वस्त्र पहनें। बिस्तर की चादर और खोल आदि को नियमित धूप दिखाएं।
’देर में पचने वाले गरिष्ठ भोजन, मांसाहार, अधिक मसालेदार, तैलीय, बासी सब्जियों के सेवन से बचें।
’भोजन में तुलसी, नींबू, अदरक और शहद को शामिल करें।

’स्वच्छ पानी के लिए उसमें फिटकरी का टुकड़ा डालकर साफ कर लें, जिससे तमाम जीवाणु व गंदगी नीचे बैठ जाएगी।
’उबाल कर ठंडे पानी में नींबू व शहद मिलाकर सुबह पीने से गैस व पेट के अन्य रोगों के साथ ही मधुमेह में भी सहायता मिलती है।
’शाम को जल्दी खाना खाएं,मच्छरदानी में सोएं और सुबह जल्दी उठने की आदत डालें।
’किसी भी तरह की असामान्य स्थिति में डॉक्टर से परामर्श लें।

बरसात के समय जो वाटर सप्लाई घरों में होती है उसमे कई जगह लीकेज होने से  सीवर का  पानी उल्टा घरों में आ जाता है, जिसको उबालकर पीना ही सबसे अच्छा तरीका है , क्योंकि यही पानी कई रोगों का जनक है।
जो पानी हम रोज पीने के लिए प्रयोग करतें है वो  शुद्ध होना चाहिए, सबसे ज्यादा शुद्ध पानी  उबला हुआ ही होता है ,पानी को बड़े बर्तन में दस मिनट ख़ौलने के बाद ठंढा  करके छान ले , इस पानी को ही पिए, पानी को RO द्वारा भी फ़िल्टर कर  सकतें है ,अन्य फ़िल्टर का प्रयोग भी कर सकते है , परंतु इसके लिए   पानी  में क्लोरीन  की टेबलेट से बैक्टिरिया को मारना पड़ेगा । बृद्ध  के बचाव में भी हमे उनकी देखभाल जरुरी है कि वो कहीं फिसलकर न गिर पड़े ,उनको ग्रीन टी का प्रयोग करना चाहिए , जो एंटीऑक्सीडेंट होती है ,बृद्ध के लिए लाभदायक है ,बृद्ध लोगों में  ज्यादातर  कई बीमारी होती है उनमे श्वसन सम्बंधी बीमारी का रोकथाम जरुरी है ,उनको साँस की समस्या के लिए सुबह शाम नियमित इन्हेलर का प्रयोग करना चाहिए।

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